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छत्तीसगढ़ का कांशी खरौद में लाख क्षिद्रों वाले लक्ष्मणेश्वर महादेव ।

●इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ था।

●शिवलिंग में एक लाख छिद्र होने के कारण इसे लक्षलिंग भी कहते हैं।

●छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर काशी के नाम से प्रसिद्ध खरौद नगर में स्थित लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में अनूठा है। 

●रामायणकालीन इस मंदिर के गर्भगृह में एक लक्षलिंग ( शिवलिंग) है जिसमें एक लाख छिद्र हैं। किवदंती है कि इनमें से एक छिद्र पाताल का रास्ता है।

● मंदिर के दक्षिण भाग के शिलालेख के में आठवी शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है।

●मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियाँ थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 

● इतिहासविद डॉ. बसुबंधु दीवान के अनुसार शिवलिंग में एक लाख छिद्र होने के कारण इसे लक्षलिंग भी कहते हैं और मंदिर लखेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। लिंग का एक छिद्र ऐसा है जिसमें कितना भी पानी डाला जाए वह पूरा सोख लेता है। मान्यता है कि वह छिद्र पाताल गामी है, उसमें जितना भी पानी डालो वह पाताल में चला जाता है। वहीं लिंग में एक अन्य छिद्र के बारे में मान्यता है कि वह अक्षय छिद्र है। उसमें हमेशा जल भरा होता है। जो कभी सूखता ही नहीं है।


●रायपुर के आचार्य अजय शर्मा के अनुसार लक्षलिंग से जुड़ी पौराणिक कथा लक्षलिंग के पीछे रामायण की एक रोचक कहानी है। रावण एक ब्राह्मण थे। अत: उनका वध करने के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए राम और लक्ष्मण ने शिव के जलाभिषेक का प्रण लिया। इसके लिए लक्ष्मण सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों से जल एकत्रित करने निकले।
इस दौरान गुप्त तीर्थ शिवरीनारायण से जल लेकर अयोध्या के लिए निकलते समय वे रोगग्रस्त हो गए। रोग से छुटकारा पाने के लिए लक्ष्मण ने शिव की आराधना की, इससे प्रसन्न होकर शिव ने लक्ष्मण को दर्शन दिया और लक्षलिंग रूप में विराजमान हो गए। लक्ष्मण ने लक्षलिंग की पूजा की और रोग मुक्त हो गए। जिसके बाद यह मंदिर लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तब से इसे लोग लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से ही जानते हैं।

[अभिनव मिश्रा द्वारा साझा किया गया।]

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