●तुरतुरिया
तुरतुरिया ज़िला रायपुर, छत्तीसगढ़ से लगभग 150 कि.मी. दूर वारंगा की पहाड़ियों के बीच बहने वाली बालमदेई नदी के किनारे पर स्थित है। यह सिरपुर से 15 मील घोर वन प्रदेश के अंतर्गत स्थित है। यहाँ अनेक बौद्ध कालीन खंडहर हैं, जिनका अनुसंधान अभी तक नहीं हुआ है। भगवान बुद्ध की एक प्राचीन भव्य मूर्ति, जो यहाँ स्थित है, जनसाधारण द्वारा वाल्मीकि ऋषि के रूप में पूजित है। पूर्व काल में यहाँ बौद्ध भिक्षुणियाँ का भी निवास स्थान था। इस स्थान पर एक झरने का पानी 'तुरतुर' की ध्वनि से बहता है, जिससे इस स्थान का नाम ही 'तुरतुरिया' पड़ गया है।
●माता सीता का आश्रय स्थल-
तुरतुरिया जाने के लिए रायपुर से बलौदा बाज़ार से कसडोल होते हुए एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 6 पर सिरपुर से कसडोल होते हुए भी जाया जा सकता है। इसका ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं पौराणिक महत्त्व है। तुरतुरिया के विषय में कहा जाता है कि श्रीराम द्वारा त्याग दिये जाने पर माता सीता ने इसी स्थान पर वाल्मीकि आश्रम में आश्रय लिया था। उसके बाद लव-कुश का भी जन्म यहीं पर हुआ था। रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यह स्थान तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। धार्मिक दृष्टि से भी इस स्थान का बहुत महत्त्व है, और यह हिन्दुओं की अपार श्रृद्धा व भावनाओं का केन्द्र भी है।
●पुरातात्विक इतिहास-
सन 1914 ई. में तत्कालीन अंग्रेज़ कमिश्नर एच.एम. लारी ने इस स्थल के महत्त्व को समझा और यहाँ खुदाई करवाई, जिसमें अनेक मंदिर और सदियों पुरानी मूर्तियाँ प्राप्त हुयी थीं। पुरातात्विक इतिहास मिलने के बाद इसके पौराणिक महत्व की सत्यता को बल मिलता है। यहाँ पर कई मंदिर बने हुए है। यहाँ आने पर सबसे पहले एक धर्मशाला दिखाई देती है, जो यादवों द्वारा बनवाई गई है। कुछ दूर जाने पर एक मंदिर है, जिसमें दो तल हैं। निचले तल में आद्यशक्ति काली माता का मंदिर है।